Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १३०पाइसु१+ होवहि बीच रसोई++।
सीत प्रशादि२ खाहि सभि कोई।
पुन जल पान चुरी करि लेहिण।
अुठहिण गुरू पुन एव करेहिण ॥१३॥
ग्राम बालके लेहिण बुलाइ।
हरख शोक जिन होइ न काइ।
तिन सोण मिलि करि खेलहिण खेल।
होहिण प्रसंन मिलहिण सिस मेल३ ॥१४॥
पहिर तीसरो एव बितावहिण।
पहिलवान तबि गुरू बुलावहिण।
मिलहिण आइ बहु परहि अखारा।
भिरहिण४ आप महिण बल धरि भारा ॥१५॥
कहि कहि तिनहु भिरावन५ ठानहिण।
कुशती करति जीति किह हानै६।
जाम दिवस के रहे बहोरी।
श्री गुरदेव तजहिण तिस ठौरी ॥१६॥
सभा बिखै शुभ आसन बैसेण।
मुनि गनि सहत शंभु७ हुइ जैसे।


१खीर।
+इक नुसखे विच पाठ सोधके मास सु लिखिआ है, इक विच लिखारी दा लिखिआ मास सु
हैसी, पर हड़ताल ला के पाइसु बनाया होइआ है।
++टिज़के दी वार विच बी लिखिआ है-लगरि दअुलति वंडीऐ रसु अंम्रितु खीरि घिआली॥
२सीत प्रशाद = किशत प्रशाद = थोड़ा जिहा प्रशाद। खालसई बोले विचखांे ळ कहिणदे हन,
किअुणकि खास वाहिगुरू दी मेहर नाल प्रापत हुंदा है, सीत प्रशाद दा अरथ है थोड़ा जिहा बाणटा जो
खांे विचोण मिले।
जापदा है कि इथे पाठ मास ही सी ते लगर विच बणदा सी, पंकति विच छकं वाले
थोड़ा-थोड़ा लैणदे सन। गुरू अमर देव जी ने प्रीखा जद कीती है तां इहो सी कि मेरे अज़गे मास
ना रज़खा जावे। पर जे असल पाठ पाइसु सी, तद अचरज नहीण कि एथे पाठ, कशीर प्रशादि
होवे कि खीर रिझदी सी ते खीर दा छांदा सभ किसे ळ मिलदा सी। हर हाल विच मास विहत या
अविहत दा झगड़ा सिख धरम विच दूसरे मतां वाणू नहीण, इस करके पज़ख वादीआण ळ झगड़न दी
लोड़ नहीण। (अ) गुरू जी दे छके विचोण छांदा।
३लड़किआण दे नाल मिलके।
४घुलदे हन।
५घुलावंा।
६हार होवे।
७समूह मुनीआण समेत शिवजी।

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