Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १२९
१७. ।खोजा अनवर दूत॥
१६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>१८
दोहरा: दिवस आगले सतिगुरू, बैठे लाइ दिवान।
पठो हुतो खोजानवर१, सूबे काले खान ॥१॥
चौपई: पूरब कई बार सो आवा।
कहि वग़ीरखां जबहि पठावा।
गुरु के संग मिलो बहु बारी।
यांते भेजो जानि चिनारी ॥२॥
नगर जलधर को तजि आयो।
श्री करतार पुरा नियरायो।
तिह छिन मन महि कपट बिचारा।
-अबि मैण परखोण करि निरधारा ॥३॥
श्री नानक अवतार कि नांही।
करामात कामल धरि मांही२।
प्रथम आवतो मसलत करने।
अबि कै गुरू प्रान हम हरने- ॥४॥
इम बिचार करि दुइ दीनार।
दोनहु हाथनि पर तबि धारि।
तरे हाथ करि एक छपाई।
इक कर अूपर देहि दिखाई ॥५॥
-जे अजमत, लेण दोनहु जान।
अपनी भेट धराइ बखानि३-।
सभा बिखै जहि बैठे सुने।
पहुचो गीदी तरकति घने ॥६॥
अुतरि तुरंग ते गयो अगारी।
तिम दीनार हाथ पर धारी।
जबि सतिगुर को नग़र दिखाई।
कीनि बिलोकन भनो सुनाई ॥७॥
आवहु खान! सुमति बिपरीती।
१खोजा अनवर।
२करामात धारन विच कामल हन (कि नहीण)।
३आपणी भेट धरा लैंगे कहिके।