Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १३७

मिल मकसूद, चलहु इह साइत१।
भलो विचार आपि ने कीनो।
बूझहु तिन इह पद२ जिन दीनो ॥५०॥
सुनति खडूर हुमाअूण आयो।
श्री अंगद जी जहां सुहायो।
संग बालकनिखेलति बैसे।
हरख शोक जिन महिण नहिण कैसे ॥५१॥
बंदन ठानि हुमाअूण खरो।
तिस दिशि रु गुरु नैक न करो३।
परचति रहे बालकनि साथि।
सभि घट की जानति जग नाथ ॥५२॥
तब हमाअुण मन कोप बिशेा।
-नहिण इस ने मेरी दिश देखा।
दै घटिका मैण ठांढो रहो।
कछू प्रभाव४ न मन महिण लहो ॥५३॥
गयो राज मैण होयो दीन।
पास खरो इनि कीनि न चीन५।
-अुचित मारिबे६- रिदे बिचारि।
धरो हाथ कबग़े तलवार७ ॥५४॥
-हतौण खैणच करि- अुर महिण ठानहि।
तब मोकहु इहु शाहु पछानहि।
अुदै भयो८ ऐणचन९ को जबै।
मुशट संग करि चिमटो तबै१० ॥५५॥
इत अुत होति न, रहो हिलाइ।


१मुराद मिल जाएगी एसे घड़ी चलो।
२मुरातबा।
३रता धिआन ना कीता।
४पातशाही रोअब (अ) मान।
५पछांिआण भी नहीण।
६मारण दे।
७तलवार दी मुज़ठ ते।
८तिआर होइआ।
९खिज़चं लई।
१०(तलवार दी) मुज़ठ नाल तदोण हज़थ चिमट गिआ।

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