Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २८
अथवा पापां दे लाहुण लई हज़थ दी तली (वाण हन, भाव जीकुं हज़थ दी
तली नाल लगी मैल ळ मलके साफ कर लईदा है, इवेण ही सीस ते सहलाहट
करदिआण जाण हज़थ छुहणदिआण ही पापां दी मैल लहि जाणदी है)। अथवा-पापां ळ दूर
करने लई हज़थां नाल ताड़ना कीती है ते जिन्हां दे (दरशन रूपी) सूरज (दे
दिज़सिआण) दंभ रूप सारे तारे छिप जाणदे हन।
४. स्रेशट श्री गुरू नानक जी करतार दिखाअुण वाले (भाव साखातकारी कराअुण
वाले) हन, दासां ळ अुधारन वाले हन, जिवेण जहाग़ (तारदा है समुंदर तोण)
अथवा कर+तार निहार = (लिव दी) तार बंन्हकेगुरू नानक ळ देख।
चौथी तुक दे अंतले करतारन दा अरथ इअुण बी बणदा है:- दासां ळ
अुधारदे हन, जिवेण (करितारन) हज़थां दी ताड़ी या चुटकी, भाव छेती तोण है।
४. इश गुरू-स्री गुरू अंगद देव जी-मंगल।
सैया: बंद न होति सुने अुपदेश
रिदे बसि जाहिण करे अभिनदन।
नदन फेरु सुछंद बिलद
बिलोचन सुंदरता अरबिंदन।
बिंदु न मंद बिकार रहै
तम ब्रिंद दिनिद मानिद निकंदन।
कंद अनद मुकंद भजो
गुर अंगद चंद सदा करि बंदन ॥९॥
बंद न = बंद+ना = रोक नहीण (हुंदी)।
अभिनदन = खुशी, अनद। (अ) मज़था टेकंा, नमसकार।
नदन = पुज़त्र। सपुज़त्र।
फेरु = फेरू जी। श्री (गुरू) अंगद देव जी दे पिता जी दा नाम भाई फेरू
चंद सी।
सुछंद = सुतंत्र। ।संस: सछणद। ॥ भाव किसे दी काण हेठ नहीण, पातशाह
जिवेण सतंत्र हुंदा है।
बिलद = अुज़चे। ।फारसी, बुलद॥।
बिलोचन = अज़ख, नैं। ।संस: विलोचन॥।
अरबिंदन = कमलां दी, नैंां दी सुंदरता कमलां (वरगी) है।
(अ) अरबिंद+न = कमल नहीण(बरज़बर) सुंदरता विच (अुन्हां दीआण अज़खां
दी सुंदरता दे)।
बिंदु न = बिंदु+न = नहीण है बिंदु, भाव रता बी नहीण, रंचक बी नही।
ब्रिंद = झुंड, सारा, समूह।
दिनिद = सूरज। दिन+इंदु = दिन दा इंदु।
मनिद = वरगा, जिहा, ।फा: मानिद॥