Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) १४६
१६. ।धान सिंघ ळ वर। शनान फल। भविज़ख॥
१५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ५ अगला अंसू>>१७
दोहरा: *धान सिंघ गुर शबद पर, दीना सभि घरि बेचि१।
पास ही बैठा पूछिआ, कहु सिज़खा तूं चेत२ ॥१॥
धान सिंघ गुर शबद सुनि, बोला बचन रसाल।
मेरी सिज़खी द्रिड़ भई, सतिगुर होइ क्रिपाल३ ॥२॥
जाण दिन४ सौदा हम किया, सुनीए श्री प्रभु दाल।
हरिगुपाल बेचति भयो, मो को कियो निहाल ॥३॥
चौपई: सपति दिवस पीछे मैण गयो।खेत बिखै हल जोरति भयो।
काढो बाहति जबि सीआर५।
धन प्रापति मुझ कई हग़ार ॥४॥
हिरदे हरखो लीन खग़ाना।
गुर महिमा पर मन ठहिराना।
घरि मैण आइ कराह गुर दीना।
भोजन सिज़ख+ अतिज़थनि कीना ॥५॥
++गुर दसौणध गुर के घरि आना।
गुर सनमुख धन कीन बिडाना।
-तुमरी वसतु कहो सो करौण।
खरचौण कै किहठां धन धरौण ॥६॥
*इह सौ साखी दी ८०वीण साखी है।
१वेच दिता सी (बचन खरीदं वेले)।
२चित दी गल दज़स।
३जदोण आप क्रिपाल होए तदोण मेरी सिज़खी द्रिड़ होई सी।
४(पर) जिस दिन........।
५वाहुंदिआण जद सिआड़ कज़ढिआ।
+पा:-बिज़प्र।
++इन्हां तुकाण दा भाव एथे संसे वाला है। परंतू सौ साखी दे पाठ तोण अरथ सपज़शट हो जाणदा है जो
ऐअुण है:-गुर की दसवीण गुर ग्रिह आणी। गुर सनमुख धन कीन विडांी। तुमारी वसत कहो सो
कराण। तुम गुर आपणी रसन अुचरा। तुमरा सौदा नफा इह आवा। गुर दसवंध तुहि दीन
चड़्हावा। मसतक टेक गइआ मैण तब ही। अुचित करम धन सो तब करि ही। जिसदा अरथ इअुण
है:-गुरू दा दसवंध मैण गुराण दे घरलै आणदा। इह देके बाकी दी वंड विच रिहा बी मैण गुराण दे
सनमुख कर दिज़ता ते आखिआ है-हे गुरो एह तुहाडी वसतु है जिवेण कहो इस नाल कराण। हे गुरो
तुसां तदोण आपणी रसनां तोण अुचारिआ सी कि इह धन तेरे (गुपाल नाल कीते) सौदे दा नफा
आइआ है, गुरू दसवंध तूं चड़्हा ही दिज़ता है। (सो मैण बचन मंन के बाकी धन लैके) आप ळ
मज़था टेकके तदोण चला गिआ ते अुस धन नाल मुनासब कंम करदा रिहा हां।