Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १५०

परमहंस तिमि जग महिण रहै।
आतम धान सदा अुर लहै ॥५८॥
तन के सुख दुख जबि परि जाइण१।
तिन ते२ हरख न सोग कदाइ।
बरतै गानी सम अज़गानी।
जानहिण जग को सुपन समानी३ ॥५९॥
बंधनि होत नही पुन ताहूं।
रहै समाइ ब्रहम के माहूं।
सुनी सीख पारो हरखायो।
लगा बिचारनि मन सुख पायो ॥६०॥
कितिक काल गुर अंगद सेव।
पुन भे अमरदासगुरदेव।
तिन ढिग बनो सु ब्रहम गिआनी।
आगे करि हैण कथा बखानी ॥६१॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे स्री अंगद जी सिखां प्रति
अुपदेश प्रसंग बरनन नाम इकादशमोण अंसू ॥११॥


१आ बणन, आ पैं।
२भाव सुख दुख ते।
३(परंतू गिआनी) जाणदा है जगत ळ सुपने समान।

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