Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १)१४९

१८. ।सिज़ख रीछ॥
१७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>१९
दोहरा: श्री सतिगुर सरबज़ग सभि, धीर, क्रिज़तग१ बिसाल।
करति अनद पुरि महि अनद, दरसहि दरशन जाल+ ॥१॥
चौपई: सहिज सुभाइक गुर सरबज़ग।
शोभति बैठे हुते क्रितज़ग।
ईखद२ सिज़ख पास परवारति।
चहूं ओर चामर बर ढारति३ ॥२॥
महां प्रकाशति बुज़धि बिलद।
जन तारनि महि पूरन चंद।
पदमपज़त्र सी आणख बिसाली।
डोरे सहित अंत महि लाली४ ॥३॥
तीछन हैण कटाख बड ईछन५।
चंचल जनु खंजन दे सीछन६।
महां अुदार मुकति लौ देति।
हेरति दासनि दुख हरि लेति ॥४॥
कितिक काल जबि बैहि बितायो।
ले इक रीछ कलदर आयो।
महांबली बड देह अकारा।
कैधौण जामवंत देह धारा ॥५॥
सभि अंगनि पर बाल बिसाला।
भूर बरन७ नख भूर कराला।
फोरि नासका रज़जू पाई।चरम कलदर तन लपटाई८ ॥६॥
लकुटी हाथ डरावनि कारन।


१(ते) कीते (अुपकार) ळ जानं वाले।
+दरसहि दास निहाल।
२थोड़े जिहे।
३झुज़लदा है।
४नेत्राण दे कोने वल डोरे दी लाली है, (कमल पज़ती दे लाल डोरे) नाल अुपमा दे रहे हन।
५नेत्राण दे।
६मानोण ममोले ळ देणदे हन सिज़खिआ।
७भूरा रंगा।
८तन ळ कलदर ने चमड़ा लपेटिआ है।

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