Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) १५७
२०. ।चंदू नाल प्रिथीए दा मेल॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>२१
दोहरा: लिखी पज़त्रिका तबि भले, अपनि जनायहु पार।
आवहु मोहि समीप अबि, दैश जि इसी प्रकार१ ॥१॥
चौपई: रचौण जतन मिलि संग तुमारे।
गहि लैहोण ततछिन तिस मारे।
मैण जि सहायक होयहु तेरा।
बनै काज, तजि कशट बडेरा ॥२॥
इज़तादिक लिखि चार२ पठावा।
मिलहु आनि, कहु जिम गहि जावा३।
पंथ अुलघति कोठे आयो।
मिलि प्रिथीए सोण सकल सुनायो ॥३॥
तुव दिशि ते मैण बहु समुझायो।
सुनि हरखो अबि निकट बुलायो।
मिलहु, दुहनि को सुधरै काजू।
अुठो चरन धरि मग महि आजू ॥४॥
नहि बूझो पांधा४ चलिपरीअहि।
अपनि मनोरथ पूरन करीअहि।
सुनि प्रिथीए नहि बिलम लगाई।
बड़वा पर काठी बंधवाई ॥५॥
मिहरवान सोण करि करि पारू।
छोरो करि चौकस परवारू।
अबि के जाइ लेय हौण गादी।
शाहु दिवान भयो बहु बादी५ ॥६॥
कहि इज़तादिक करमो संग।
धीरज दे करि चलो अुमंग।
चलै दूर मग बासुर सारे६।
१जे वैर इसे तर्हां दा है।
२दूत, हलकारा।
३आके मिल ते कहु जिवेण फड़िआ जावे।
४पांधा ना पुज़छ, भाव देरी ना कर।
५वैरी (श्री अरजन जी दा)।
६रसते विच दूर (मंग़ल) तज़क चलदा है।