Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १६२
१९. ।शाह जहान ळ मुलस खां दे जंग दी हार दी बर॥
१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२०
दोहरा: इति श्री हरि गोविंद जी,
गमने गोइंदवाल।
अुत लवपरि की कुछ कथा,
सुनीयहि जस भा हाल ॥१॥
चौपई: जेतिक बचे भगैल पलाए।
किसू ग्राम बसि भोर सिधाए।
शाहजहां के पहुचे पासि।
पिखो जुज़ध जिन के बडि त्रास ॥२॥
रण की सगरी सुधपहुचाई।
जे सरदार पठे समुदाई।
मुलसखां समेत सभि मारे।
नहीण बचे गुरु ते सभि हारे ॥३॥
शाहजहां सुनि कै बिसमानो।
एतो लशकर किस बिधि हानो?
रण को हेरति जे भजि आए।
सुनिबे हित से निकटि बुलाए ॥४॥
जाइ सलाम शाहु सोण कीनि।
बूझनि हित बोले लखि दीनि।
भयो जंग किम सभि ही मारे?
करो कपट कुछ नहि संभारे१? ॥५॥
कै गुर ढिग लशकर भट भारे?
हुते अलप जिस ते२ तुम हारे?
सुनि भगैल गन कहो बनाइ।
कछु खुदाइ गति लखी न जाइ ॥६॥
हम ते दस गुन तिह दल थोरा।
छल बी नहीण भयो तिस ठौरा।
हम छल सोण निस महि चलि गए।
पुरि ते अुरे* अूचि थल अए ॥७॥
१कुछ छल कीता है (जिस ळ मेरी सैना) संभाल नहीण सकी?
२(ते तुसीण) थोड़े साओ जिस करके।