Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १६७

२३. ।खोजा अनवर बज़ध॥२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>२४
दोहरा: इम चहुं दिशि मैण गोल दल, संग लिए सरदार।
चहति बरन* को ग़ोर ते, सभि श्री पुरि करतार ॥१॥
तोमर छंद: गहि तीर तोमर फेर।
तुरकान को हति गेर।
मिहरा महां बर बीर।
अमियां सहाइक धीर ॥२॥
गुर को प्रताप बिसाल।
करि जंग कोप कराल।
असमान खान महान।
जहि ठांढि मारति बान ॥३॥
जिह संग दूत१ सहाइ।
जिन मार पूरब खाइ।
बिन लाज मूरख पेर।
गुर सोण चहै भट भेर२ ॥४॥
दिश दौन मैण सरदार।
बहु कोप ते भट चार।
गन सैन लै करि संग।
पग रोपि कै किय जंग ॥५॥
दिशि दज़खनी घमसान।
बहु कीनि हा३ भट प्रान।
गुलकान को बरखाइ।
करका४ मनो घन पाइ ॥६॥
सिर फूटि हांडनि जैस५।अुर फोरि मारति हैस६।


*पा:-हतनि।
१भाव अनवर खां।
२मुकाबला।
३नाश।
४गड़े।
५हांडीआ वत।
६मारदे हन।

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