Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १६९

२०. ।गुरू जी गोइंदवाल पहुंचे॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>२१
दोहरा: श्री गुर हरिगोविंद जी, अुलघे पंथ अशेख।
पहुचे गोइंदवाल तबि, चतुर घटी दिन शेख१ ॥१॥
चौपई: पुरि महि सुधि होई ततकाला।
मुल मारि गुर सुभट बिसाला।
रण करि तुरक संबूह संघारे।
जियति बचे जि भाजि सिधारे ॥२॥
इस थल, जुति कुटंब गुरु आए।
जिन के संग सुभट समुदाए।
तजि तजि निजि निजि काज सिधाए।
कहि गुर दरसहि दौरति आए ॥३॥
ले करि मेवा गन पकवान।
आइ मिलेसतिगुरु भगवान।
धरि प्रसादि को बंदन कीनि।
हाथ जोरि सिख भए अधीन ॥४॥
क्रिपा द्रिशटि ते सरब निहारे।
कुशल प्रशन सभि संग अुचारे।
आसासनि२ करि साथ लए हैण।
प्रिथम बावली निकटि गए हैण ॥५॥
बंदन कीनि अगारी थिरे।
डेरा सकल वहिर ही करे।
बैठि तहां गुरु सिज़ख पठाो।
सभि कुटंब को निकटि बुलायो ॥६॥
पंचहु साहिबग़ादे आनो।
कहहु जाइ -बापी इशनानो-।
धाइ सिज़ख डेरे महि आयहु।
सभि सोण सतिगुरु हुकम सुनायहु ॥७॥
सुनि सभि गए करनि इशनान।


१बाकी सी।
२पिआर देके ।संस: असासन = दिलासा॥

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