Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) १७२

१९. ।महांदेव जी ने प्रिथीए ळ समझाअुणा॥१८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>२०
दोहरा: प्रिथीआ गमनति धाम को,
हटि फिर ठांढो होइ।
कहिन लगो करि क्रोध को,
धन दे तुझ सभि कोइ ॥१॥
सैया छंद: सुख की नीणद न सोवति देवोण
करि पुकार मैण पकरि मंगाइ।
सुत बनिता जुत खेदति करि कै
तुरकनि ते तुझ को मरवाइ।
मूछन पर निज कर को फेरति,
तौ मैण प्रिथीआ नाम कहाइ।
मिलिनि होइ तबि हूं तुमरै संग,
राखहु याद बिसर जिन जाइ१ ॥२॥
इम सुनि सतिगुर करो धिकारनि
करम करनि को धिक धिक तोहि।
पुन तेरे बाकनि को धिक धिक,
करनि पैज को धिक धिक होहि।
मुख को धिक धिक, मूछनि धिक धिक,
कुल की रीत तजी धिक जोहि।
परहि नरक महि तारहि नहि को२,
गन कलिमल करिता अुर क्रोहि३* ॥३॥
गमनो प्रिथीआ गारिनिकासति

१भुज़ल ना जाणा।
२तैळ तारेगा कोई नहीण।
३रिदे दा क्रोधी।
*पिछली सारी बात चीत विच कवि जी दी कविता दा कमाल है, पर सुखमनी साहिब दे रचनहार
जी सहिन शीलता दे पुंज आपणी सारी बाणी तोण अंम्रित दा चशमा ते प्रेम दा रूप खिमां दा घर
प्रगट हो रहे श्री गुरू अरजन देव दी दे वाक बहूं अुज़चे होणे हन। अज़गे चज़लके अंसू २१ अंक २५
विखे गुरू जी आप आख रहे हन:- हम नहि बुरा कहो तिस लेश। जिन्हां ने गुरू अरजन देव
जी ळ अज़खीण डिज़ठा है ओह अुन्हां बाबत दज़सदे हन:- तै जनमत गुरमति ब्रहमु पछांिओ ॥ पुन:
गुरू अरजन जी मेदनि भरू सहता ॥ पुन: तिह जन जाचहु जगत्र पर जानीअतु बासुर रयनि
बासु जाको हितु नाम सिअु ॥ परम अतीतु परमेसुर कै रंगि रंगो बासना ते बाहरि पै देखीअतु
धाम सिअु ॥ अपर परंपर पुरख सिअु प्रेमु लाग्हो बिनु भगवंत रसु नाही अअुरै काम सिअु ॥
मथुरा को प्रभू स्रबमय अरजुन गुरु भगति है हेति पाइ रहिओ मिलि राम सिअु ॥३॥

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