Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) १७६

२५. ।धीर मज़ल ळ सुनेहा पुज़जा॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>२६
दोहरा: गमनहार करतारपुरि, सुनि गुर क्रिती निहारि१।
अुरबिसमो- गुर का करो, कागद नीर मझार! ॥१॥
चौपई: बहुर धीरमल संग अुचारा२।
जल ते लिहु निकासि बिन बारा३।
जे अबि साबत प्रापति हाथ।
तौ अति करामात के साथ४ ॥२॥
जे नहि निकसो, कै गर गयो५।
दुलभ ग्रिंथ तौ बिनसति भयो।
धीरमज़ल सोण ठानो हास।
जिस प्रति कहो कि लेहु निकासि- ॥३॥
एव बिचारति मारग जातो।
कहिबे कारन ते अुतलातो६।
श्रोता! सुनहु ग्रिंथ की कथा।
पुन सतिगुर की अुचरौण जथा ॥४॥
सो नर पहुचो पुरि करतार।
अदभुत गाथा रिदै बिचारि।
धीरमज़ल के सदन सिधायो।
गुरू जानि तिह सीस निवायो ॥५॥
हाथ जोरि सभि कथा अुचारी।
मैण आवति इत, जथा निहारी७।
सतिगुर ते बहादर धीर।
देखे नदी बिपासा तीर ॥६॥
कहैण सिज़ख सोण -ग्रिंथ लिजावहु।
श्री करतार पुरे पहुचावहु-।


१करतार पुरि ळ जाण वाले ने गुरू जी तोण (सुनेहा) सुण (गुरू जी दी) क्रिज़त वेखके।
२भाव सुनेहा दिज़ताकि।
३डेर तोण बिना।
४जे हुण साबत रहे ते लभ पवे तां (गुरू जी) भावेण करामात वाले हन।
५गज़ल पिआ।
६(धीरमल ळ) (छेती) कहिं दे कारन काहली करदा है।
७जिवेण देखिआ।

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