Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्रीगुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) १७९

२५. ।गालव दे छे सौ घोड़ा प्रापत करन दी कथा॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>२६
चौपई: अबहि कथा सतिसंग की, अरु गुर माननि केर।
सुनहु प्रेम करि अुर धरहु, लिहु कज़लान बडेर++ ॥१॥
चौपई: बिसामिज़त्र महां मुनि राया।
करि तप जिस ने ब्रहम पद पाया।
तिस को सिख गालव रिखि१ भयो।
सभि बिधि को अुपदेश सु लयो ॥२॥
गुर संग कहो दज़छणा लीजै।
चहह जु आगा मो कहु दीजहि।
बिज़सामिज़त्र बखानो बैन।
दज़छना लैन चाहि मुझ है न ॥३॥
कहो दैन को तैण करि भाइ।
यां ते हम ने लीनसि पाइ।
गालव ने पुन बाक बखाना।
बिज़दा निफलहि बिन दिय दाना ॥४॥
यां ते अुचित अुचारन अहो२।
अरपौण दछना जोण तुम लहो।
बिना दिये मुहि शांति न आवै।
दिहु आइसु जैसे चित भावै ॥५॥
बिसामिज़त्र हटावनि कीनसि।
बार बार बरजोहित भीनसि।
गालव नहि मानी सो बात।
लिहु लिहु दछना कहि बज़खात ॥६॥
सुनि कौसक ने३ क्रोध बधावा।
तिह अशकति लखि बाक अलावा।
शाम करन तन ससी समाना४।


++कई पुरातन लिखती नुसखिआण विज़च इज़थे इक होर दोहरा वी मिलदा है जिसदा पाठ इह है:-
सुनि सिख गुरु की दज़छना दैबे हित मुनि एक। महां जतन को करति भा संकट सहे अनेक ॥२॥
१इह राजरिखी सी, पर अंत विशामित्र ने इस ळ ब्रहमरिशी दे दरजे दा रिशी प्रवाण कीता।
२कहिंे योग है (दान दी आगिआ)।
३विशामिज़त्र ने।
४काले कंनां ते चंद्रमा वरगे स्रीर वाले।

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