Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) १८३

२६. ।धीरमज़ल ळ बीड़ दा मिलना॥
२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>२७
दोहरा: अुठि प्रभाति को तार भा, करि कै सौच शनान।
केवट ब्रिंद बुलाइ करि, देनि दरब बहु मानि१ ॥१॥
चौपई: अपर नीर महि तरने हारे।
सुनि सुनि गुनि तिन लीनि हकारे।
जार२ ब्रिंद को लयो मंगाइ।
सभि बिधि तेतारी करिवाइ ॥२॥
ग़ीन परो सुंदर हय आयो।
गुर गन को३ मन बिखै मनायो।
नम्रि सीस करि बंदन धारी।
इही कामना पुरहु हमारी ॥३॥
पंचांम्रित बहु आनि करावौण।
जे करि ग्रिंथ जाइ मैण पावौण।
इम मनौत को मानि घनेरी।
हय पर चढो सौन शुभ हेरी ॥४॥
हरखो लखो -काज हुइ मेरो।
जिस ते और न भलो बडेरो-।
गमनो मारग लै नर ब्रिंद।
संग बिबस हुइ चलो मसंद ॥५॥
तिस नर को लै संगि करो है।
आनि बिपासा कूल४ खरो है।
जहि तिन थान बतावनि कीना।
देखि तहां डेरा करि दीना ॥६॥
तंबू अरु कनात लगवाए।
तरनहार५ नर चलि करि आए।
सभि को दीनसि अधिक दिलासा।
करहु काज पुरवहु मम आसा ॥७॥


१बहुता धन देणा मंन के।
२जाल।
३सारे सतिगुराण ळ।
४कंढे।
५तारन वाले।

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