Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन १) १८३
दूसर फते सिंघ मन भायो ॥४०॥
इक माता ते दोनहु भाई।
दो बिमात ते देअुण बताई१।
बखतू सिंघ अरु तखतू सिंघ।
सुत+ जीवं चारोण जनु सिंघ ॥४१॥
निकट ग्राम महि इनको बासा।
आवति जाति रहैण गुर पासा।
कितिक मास सतिगुरू बिताए।
चहुदिशि ते सिख दरशन आए ॥४२॥
नर नारनि की भीर हमेश।
हित दरशन के मिलहि विशेश।
नाना बिधि की आनि अकोर।
करहि समरपन जुग करि जोरि ॥४३॥
इति स्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम ऐने भगतू सुत प्रसंग बरनन
नाम इक बिंसती अंसू ॥२१॥
१मत्रेई तोण दसदा हां किदो होर सन:-
+इथे भुलेखा है। एह चारे जीवं दे प्रोते हन, पुज़त्र नहीण। पुत्र संत दास है, कवी जी जीवं दा
इको पुत्र आप दज़स आए हन जो चलांे मगरोण जंमिआ सी। देखो रास १० अंसू १८ अंक १८।