Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 177 of 453 from Volume 2

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) १९०

२२. ।श्री अरजन जी ळ गुरिआई। शबद दा चौथा पद रचिआ॥
२१ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगलाअंसू>> २३
दोहरा: सुनि कै ब्रिध के बचन को,
सतिगुर रिदै अनद।
-इनहुण सराहो तबि भयो,
श्री अरजन कुल चंद ॥१॥
चौपई: बरती दिनहु१ बहुत गुरिआई।
सार असार परखना पाई।
मुख जोहरी जबहि* जवाहर२।
परखहि, तबि+ होवै जग ग़ाहर- ॥२॥
श्रीफल३ पैसे पंच मंगाए।
जहिण कहिण ते सिख सरब बुलाए।
सभि संगति को मेला भयो।
चहुणदिश परवारति हुइ गयो ॥३॥
सरब निहारत -कहां करहिणगे?
बडि सुत सोण अुर क्रोध धरहिणगे-।
तबि श्री रामदास अुठि करि कै।
श्रीफल अर पैसे कर धरि कै ॥४॥
तीन प्रदज़छन को तबि दीन।
श्री अरजन सुत लाइक चीन।
तिन आगे धरि मसतक टेका।
अति अनद भा जलधि बिबेका ॥५॥
पुन सतिगुर की आइसु पाइ।
बुज़ढा अुठो रिदे हरखाइ।
भरो भाग सोण भाल जु नीका४।
निज कर ते सुठ कीनसि टीका ॥६॥
सभि सोण सतिगुर बाक अुचारे।


१भाव देखी है भाई बुज़ढे ने।
*पा:-जबरि।
२वधीआ रतन।
+पा:-जब।
३नलेर।
४जोमज़था भले भागां नाल भरपूर सी (अुस ते)।

Displaying Page 177 of 453 from Volume 2