Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११)१९१

२७. ।आनद पुर वसाअुण वाली थां आअुणा॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>२८
दोहरा: गुरू ग्रिंथ गाथा जथा, कथी सु मैण चित लाइ।
अबि प्रसंग नौमे गुरू, सुनि श्रोता! सुख पाइ ॥१॥
चौपई: नदी ग्रिंथ साहिब को धरि कै।
सौणपि भले अरु बंदन करि कै।
जाइ मजल+ अुतरे निस जानि।
खान पान सभि कीनि सथान ॥२॥
सुपति जथा सुख करि बिसराम।
जागे जामनि जानि सु जामु१।
सौच शनान कीनि गुर पूरे।
दासनि सुखद चलित जिन रूरे ॥३॥
आसावार रबाबी गावति।
सुनहि सिज़ख सभि पाप मिटावति।
सतिगुर धान लाइ करि थिरे।
निज सरूप महि इकता करे ॥४॥
भई प्रभाति भोग तबि पायो।
सुनि अरदास सीस सभि नायो।
सगरे वाहन कीनसि तारी।
डोरे अरु संदन असु२ भारी ॥५॥
पहिर बसत्र सभि शसत्र लगाए।
प्रथम खड़ग सुंदर गर पाए।
कंचन मुशट महां खर धारा३।सर खर४ भरि तरकश गर धारा ॥६॥
धनुख हाथ गहि भे असवार।
मज़खं संग लोक गन लार५।

+करतार पुर तोण कुछ वाट ते हग़ारा पिंड है, जिज़थे इह रात बिशराम कीता सी, अगले दिन नवेण
शहिर दे लागे दुरगा पिंड विच आराम कीता। दुहीण थाईण यादगार विच गुरदुआरे बणे सुणीणदे
हन।
१पहिर रात रहिदी जाणके जागे।
२घोड़े।
३तिज़खी धार।
४तिज़खे तीराण (नाल)।
५कतार। (अ) नाल।

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