Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) ३१
३. ।सगाई दी तिआरी दिली दी संगत ने अरदास लिखी॥
२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>४
दोहरा: दिज गमनो दिज़ली दिशा, सनै सनै मग जाइ।
पहुचे चंदू के सदन, आशिख दई वधाइ ॥१॥
सैया छंद: बैठि समीप सुनावनि कीनसि
बिचरे जहि कहि पुरि समुदाइ।
नहि पायहु सनबंध किसी थल
लवपुरि ते सुधि को पुन पाइ।
पिखो पहुचि कै भलो ठिकानोसोढी बंस बिदति सभि थाइ।
श्री रघुबरि की कुल अकलक जु
जगत पूज अबि गुरु सुखदाइ ॥२॥
कुल आछी, धन गन बर सुंदर
तोहि कहो जस देखो जाइ।
तव तनुजा के भाग बडे लखि
बनहि पूज जग मात कहाइ।
सो घर अून न किस हूं बिधि करि
हम तौ हेरि रहे हरखाइ।
इति तूं बडो दिवान शाह को
अुत जग गुर जिम चहैण बनाइ ॥३॥
तिनु बिनु अपर खोज हम थाके
नहि पायहु बिचरे बहु देश।
श्री नानक गादी पर थित है
श्री अरजन गुरु नाम कहे सु।
महां प्रताप पूजते चहुं दिशि
दरब बिभूखन चढहि विशेश।
भीर हग़ारनि लोकनि की रहि,
करहि नमो धरि भाअु अशेशु ॥४॥
बर की सूरत सुंदर अतिशै
मनहु क्रिशन के इह अवतार*।
अपर बिखै दुति१ ऐसी होइ न*इक ब्राहमन सभ तोण वज़डी अुपमा आपणे निशचे विज़च इहो ही दे सकदा है।