Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १९४२६. ।मथुरा॥
२५ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>२७
दोहरा: भई भोर नौरग चढो, मथरा के समहाइ।
बाद करनि हिंदुवान सोण, महां मूढ दुखदाइ ॥१॥
चौपई: चढि असवारी नौरंग धायो।
मथरा आइ सिवर निज पायो।
हेरे मंदर खरे हग़ारोण।
मूरति अंदर बिबिध प्रकारो ॥२॥
बड घंटनि के शबद अुठते।
अनिक रीति अुतसाह करंते।
पिखति नुरंगा जर बर गयो।
मुज़ख मनुख हकारति भयो ॥३॥
बिज़प्र बिरागी जबि चलि आए।
सभिनि साथ बच दुखद अलाए।
का तुम दंभ कमावनि कीनसि?
मग ुदाइ मिलिबो नहि चीनसि? ॥४॥
बुत पूजति अपराध महाना।
सो तुम निस दिन करहु अजाना।
पाथर महि ुदाइ को मानि।
लोकनि ठगहु, देहि धन आनि ॥५॥
बुत पूजनि कौ देहु हटाइ।
नहि दोग़क महि मिलहि सग़ाइ।
कलमा पठहु दीन महि आवहु।
चलनि शर्हा महि रुचि अुपजावहु ॥६॥
भिसत बिखै पहुचनि कहु राहू।
अनतभ्रमति दोग़क महि जाहू१।
इज़तादिक कहि बहु समुझाए।
सभिनि कहो हमरो ध्रम जाए ॥७॥
जो आगे भे बडे बडेरे।
तिनहि बतायहु मरा, जिन हेरे२।


१होर पासे भरमणे करके नरक विच जाओगे।
२जिन्हां (वज़डिआण ने क्रिशन जी ळ) देखिआ सी।

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