Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) १९७

२८. ।मज़खं शाह विदा। श्री अनद पुर वसाअुणा॥
२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>२९
दोहरा: जबि सतिगुरु थिरता गही, ऐशरज भयो बिसाल।
मज़खं रिदै अनद है, पूजे गुरू क्रिपाल ॥१॥
चौपई: इक दिन हाथ जोरि करि कहो।
प्रभु जी रावरि दरशन लहो।
मनो कामना पूरन होई।
जनम मरन की चिंत न कोई ॥२॥
जोण जोण नित प्रति दरशन करो।
मोह तिमर अुर ते परहरो।
लोक प्रलोक सहायक पाए।
बडे भाग जागे, हितवाए१ ॥३॥
छपे बहुत हीप्रापति भए।
सभि संगति के संसे गए।
अबि मैण चाहौण चलो आवास।
चित नित चरन कवल के पास ॥४॥
-नहि बिसरहु अुर- बर को दीजै।
इह सेवक पर करुना कीजै।
बाणछति रहौण दरस को हेरे२।
आवति अहै चुमासा नेरे ॥५॥
चलो न जाइ पंथ हुइ पानी।
सदन हमारे दूर महानी।
हे प्रभु! मुझ को नांहि बिसारो।
सेवक जानि सदा संभारो ॥६॥
सुनि श्री तेग बहादर पूरे।
भए प्रसंन दीनि बर रूरे।
जनम मरन तेरो कटि गइअू।
श्री नानक को सेवक भइअू ॥७॥
सज़तिनाम सिमरहु दिन राती।
गुर बानी पढि है चित शांती।


१प्रेम वाला होया हां।
२दरशन देखं ळ चाहुंदा रहां।

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