Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) २०३
२९. ।माखो दैणत॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>३०
दोहरा: सतिगुर रिदै बिचारि करि,
पिखि पुरि की दिशि दौन१।
हुते मसंदनि सहित थित,
चढि करि अूचे भौन ॥१॥
चौपई: २इक दिशि धार फैल जुति सैल।
हरित तरोवरु सुंदर सैल४।
दिखीअति गिरवर तुंग नजीका।
जहां बास श्री देवी जी का* ॥२॥
दुतिय दिशा द्रिग फेरति हेरा।
सतुज़द्रव केर प्रवाह बडेरा।
होति अनद पिखेअभिरामू।
यां ते धरि अनदपुरि नामू ॥३॥
जिस दिन धरो सु नाम गुसाईण।
तिस ते निसा भई जबि आई।
खान पान करि पौढनि कीना।
तिमर दसो दिशि छायो पीना ॥४॥
तबि इक दानव आवनि चहो।
बहु दुरगंधति बायू बहो।
जबि बदबोइ गुरू कौ आई।
मुख ते बसन ठानि३ सहिसाई ॥५॥
करो बिलोकनि जिस दिशि पौर।
दारुन बेख करो तिस ठौर।
महां भयानक रूप दिखावा।
जिह के पिखे त्रास नर पावा ॥६॥
१पुर दी दोहां तरफां वज़ल देखिआ।
२इक पासे पहाड़ श्रेणी पज़थराण संे फैल रही है (अुपर अुसदे) हरो बिज़छां दा सुहणा नग़ारा है।
।धार = पांी दी रौअ। इक पहाड़ी श्रेणी ळ दूजी पहाड़ श्रेणी तोण पांी दी रौअ ही निखेड़दी है,
इस करके पहाड़ शेंी दा नाअुण धार पै गिआ है॥
*इह गज़ल गुरू जी पर कोई असर नहीण रज़खदी सी, जदकि छेवीण पातशाही दे समेण दे हाल
दबिसतान मग़ाहब वाले ने लिखे हन ते दज़सिआ है कि कीकूं सिख देवी पूजन ळ मौल नाल देखदे
सन। ते कवी जी ऐअुण लिख रहे हन जिवेण ओथे मंदर सी जो वासतव विज़चकोई नहीण सी।
३पज़ला लै के।