Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २१२

निकट बिपासा१ बहे प्रवाहू।
जुकत तरंग बिमल जल मांहू*२।
चज़क्रवाक३ ते आदि बिहंगा।
बहु शबदाइ४, मानु जिम गंगा ॥१८॥
सुंदर पुलनि५ सथान जिसी के।
सिकता म्रिदु जुग तीर६ तिसी के।
लवपुरि आदि गमन तहिण राहू७।
इत दिज़ली पहुणचति से जाहू८ ॥१९॥
घाट अुरार पार अुतरैबे।
आवति जात लोक ठहिरैबे।
तीर बिपासा सुंदर थानू।
अूचो शोभति, देखि महांनू९ ॥२०॥
जिम श्री अंगद आगा दीनसि।
सज़तिनाम कहि जल कर लीनसि।
छिरकन करो सथान चुफेरे।
फेर न आवहिण प्रेतनि डेरे१० ॥२१॥
छरी धरी कर श्री गुर कर की११।
करी लकीर जिती धर पुरि की१२।
बहुर मंगायहु बहु मिशटाना१३।
हरखो गोणदा धन महाना ॥२२॥
खरे होइ श्री अमर सुजाने।


१कोल बिआसा दा प्रवाह वहिणदा है (जिस) विच अुज़जल जल लहिराण समेत है।*पा:-पाहू।
२कोल बिआसा दा प्रवाह वहिणदा है (जिस) विच अुज़जल जल लहिराण समेत है।
३चकवा।
४बोलदे हन।
५नदी दा किनारा, (अ) किनारे दी भोण जो हुणे पांी हेठोण निकली होवे सो पुलिन।
६कोमल रेत दे दोनोण कंढे।
७लहौर आदि जाण लई अुथोण राह सी।
८इधर दिज़ली जाण वाले पहुंचदे सी।
९देखं विच स्रेशट।
१०प्रेतां दे डेरे।
११श्री गुरू जी दे हज़थ वाली छड़ी हज़थ विच फड़ी।
१२धरती शहिर दी।
१३मिज़ठा।

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