Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २१३
हाथ जोरि अरदास बखाने।
श्री नानक श्री अंगद नामू।
सिमरि सिमरि आनन अभिरामू१ ॥२३॥
अरपन करो सकल मिशटानू।
पुनहु सभिनि को बाणटन ठानू२।
पूरब दिशा धरा पटवाई।
एकसार सुंदर बनवाई ॥२४॥
श्री नानक के चरन मनाए।
नगर नीव धरि चिनबे३ लाए।
तबि ते बहुर न भूत न प्रेत।
नहिण देखे जो ढाहिण निकेत ॥२५॥
पूरब सदन बनावहि कोअू।
प्रेत बिदारति ढाहति सोअू।
चिनो जितो सो बनो रहो है।
गोणदे देखि अनद लहो है ॥२६॥
बहुधन खरच मजूर लगाए।
करते कारीगर४ समुदाए।
तबि श्री अमर बिचार करो है।
तिस गोणदे पर नाम धरो है ॥२७॥
गोइंदवाल अुचारि सुनायो।
भयो नाम पुरि को बिदतायो।
केतिक सदन तार करिवाए।
स्री अंगद के दरशन आए ॥२८॥
बंदन ठानी होइ अधीना।
भनति बिनै बनि आगै दीना५।
रावरि की आगा जिमि होई।
सुधरो काज भयो पुरि सोई६ ॥२९॥
१सुंदर मूंह तोण।
२वंड दिज़ता।
३अुसारन।
४अुसारन वाले।
५(गुरू जी) अज़गे दीन बणके।
६अुह (काज) पूरा हो गिआ