Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (राशि ३) २११

२३. ।प्रिथीए ने हेहर विखे ताल लगवाइआ॥
२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>२४
दोहरा: श्री गुर सोण मतसर धरति, रचति दंभ बहु भांति।
लागि तड़ाग बनावने, कहि कहि महिमा बाति ॥१॥
निसानी छंद: खरचति दरब बिसाल को, आवे लगवाए।
ब्रिंद मिहनती लगि परे, बहु कार कराए।
खनो तुरत बड ताल को, म्रितका निकसाई।
चहुदिशि ते इकसार करि, चिनती१ लगवाई ॥२॥
दिन सगरे बैठो रहै, कहि कहि करिवावै।
देति मजूरी संझ को, भुनसार लगावै।
गन कारीगर चिनति हैण, सुंदरता संगा।
देखि देखि हरखहि रिदै, धरि बडी अुमंगा ॥३॥
करति सुधासर रीस को, तिस ही बिधि कीनो।
मंदर तीर तड़ाग के, शुभ रचना चीनो।
हरि मंदर सम दर२ करे, कहि आप बतावै।
कहि कहि छिज़प्र३करावतो, धन दे हुलसावै ॥४॥
मान सरोवर बिमल जल, घर हंसनि केरा।
तिम अंम्रितसर कीरतनि, गन संत बसेरा।
कमल प्रफुज़लित बहु बरन, दिपतावति शोभा।
सज़तिनामु हरि राम प्रभु, अलि जन गन लोभा४ ॥५॥
बिच सुंदर मकरंद है, आनद संदोहा५।
लघु दीरघ दल ब्रिंद हैण, सद गुन गन सोहा।
जहि पराग६ शरधा सुभग, चहुदिशि पसरंती।
सुठ म्रिंाल७ गुर चरन की, प्रीती अुपजंती ॥६॥
मुकता मुकति८ अनेक ही, लै संत मराला।
मिलहि बिनोद प्रमोद ते१, चहु कोद बिसाला।

१अुसारी।
२दरवज़जे।
३छेती।
४दास रूप भौरे लुभाइमान हन।
५समूह अनद।
६पुशप धूड़ी।
७सुंदर कमल डंडी है (जो)।
८मुकती रूपी मोती।

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