Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) २१३

२८. ।श्री चंद जी ने भेट मंगी॥
२७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>२९
दोहरा: श्री गुरु अरजन सुधासर, करहि नरनि कज़लानु।
कीरति घर घर चंद्रिका, अुज़जल दिपति महान ॥१॥
हाकल छंद: श्री नानक सुत स्री चंदं।
तप तापति दिपति बिलदं।
अज़भास जोग महि भारी।
हुइ सफल जि गिरा अुचारी ॥२॥
नित दास कमलीआ पासी।
मति बिशियनि बिसै१*अुदासी।
इक सेव करनि ही भावै।
निस बासुर बहुत कमावै ॥३॥
तिस निकट देखि श्री चंदं।
बच भाखो कारजवंदं२।
भो सुनहु कमलीआ नीका!
गुरु सोढी कुल को टीका ॥४॥
श्री अरजन धीरज धारी।
नित बनो रहति अुपकारी।
तिनि अपनो नदन बाहा।
हरि गोविंद चंद अुमाहा ॥५॥
इक संमति जबहि बिताए३।
धन हम ढिग भेट+ पठाए४।
गिन देति पंच सै सारे।
अबि कै नहि रिद बिचारे ॥६॥
लखि दुगनी भई अकोरा+।
इक बाहु, बरस की औरा५।

१विशिआण विचोण।
*पा:-बिखै।
२कारज वाला।
३बीतदा है।
+गुर नानक देव जी दी अंश जाणके, मां रज़खं तोण कवी जी दी मुराद है, होर भाव नहीण है,
किअुण जो वडे तां गुरू साहिब जी ही सन।
४भेजदे सी।
५इक विआह दी ते दूजी सालाना।

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