Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) २१३

२५. ।बखत मज़ल तारा चंद। घोड़े॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>२६
दोहरा: केतिक दिवस बितीत भे,
तहां सिवर को घालि।
देश बिदेशन संगतां,
सुनि इत पहुचहि चालि१ ॥१॥
चौपई: अनगन सिज़खनि की बहु भीर।
इक पहुंचति हैण पाइ बहीर।
एक बिसरजन होति पयानै।
चलति पंथ गुर सुजसु बखानैण ॥२॥
धन समुदाइ चलो नित आवै।
शसत्र तुरंग अनिक अरपावैण।
बसत्र अजाइब आइ अपूरब२।
अुज़तर, पशचम, दज़खन, पूरब ॥३॥
संगति चलि काबल ते आई।
जिस महि धनी मनुज समुदाई।
तिन महि दोइ मसंद बिलद।
नाम बखत मल, तारा चंद ॥४॥
प्रथम सिवर करिकै शुभ थान।
कर पद बदन पखारे पान३।
निज निज भेट लीए कर नीकी।
करनि भावना पूरन जी की ॥५॥
सतिगुर के दरशन को चाले।
जिस हित गमने पंथ बिसाले।
श्री हरिगोविंद सभा लगाए।
जनु अुडगन महि चंद सुहाए ॥६॥
सिज़ख सुरनि महि इंद्र समाना।
कै जादव महि श्री भगवाना।
चहुदिशि करि जोरति नर खरे।


१चज़ल के।
२अनोखे।
३पांी नाल।

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