Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०)२१४

३०. ।रामराइ जी दी दैश॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>३१
दोहरा: श्री हरि क्रिशन प्रताप बड, सुजसु सुनहि नित कान।
धीर महां गंभीर हैण, करामात महीयान ॥१॥
चौपई: अनिक संगतां नित प्रति आवैण।
अरपि अुपाइन दरशन पावैण।
पूर कामना सिज़ख अनेकू।
केतिक पावति दात बिबेकू ॥२॥
कीरति पसरी पुरि पुरि घर घर।
संकट परहरि दरशन करि करि।
आनि आनि गुन अधिक सुनावैण।
सुनि सुनि रामराइ दुख पावै ॥३॥
जरी न जाइ अनुज बडिआई।
चितवति चित महि अति तपताई।
जोण जोण गुन गन सुनि है कान।
तोण तोण छोभ रिदे बहु ठानि ॥४॥
बसि न बसावहि चितवहि जतना।
किम प्रापति है गुरता रतना।
सिज़ख मसंद मेवड़े ब्रिंद।
सभि महि बैठे चिंत बिलद ॥५॥
रिदे बिखे जिम गिनती गिनति।
मुज़खनि साथ बाक कहु भनति।
करति प्रतीखनि मैण नित रहो।
बिन अधिकार अनुज पद लहो ॥६॥दिज़ली पुरि आवनि ढिग शाहू।
नहि किन कीनसि तबि अुतसाहू।
सभि ते अज़ग्र कीए मुझ भेजा।
नाम सुने जिस धरक करेजा ॥७॥
मैण अपनी बुधि को बल करि कै।
अग़मत अनिक प्रकार दिखरि कै।
कहिबे सुनिबे की चतुराई।
करी बहुत मिलि तुरकनि राई ॥८॥

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