Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २१७
२०. ।गुरू जी ळ वरुं दा मिलंा।
ते श्रीगुरू अंगद जी दे गुण॥
१९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १ अगला अंसू>>२१
दोहरा: इक दिन श्री अंगद गुरू, देखनि गोइंदवाल।
भए तार चलिबे तहां, रिदा बिसाल क्रिपाल ॥१॥
चौपई: सने सने पग सोण मग चले।
प्रेम डोर महिण फसि करि भले।
निस दिन सतिगुर+ अमर अराधे।
-आइण इहां पिखि अगम अगाधे१- ॥२॥
बैठे धान लाइ करि ऐसे।
रहो गयो नहिण गुर ते कैसे२।
खिचे प्रेम ते मारग चले।
बंदहिण चरन जु बाहर मिले ॥३॥
किनहु कीनि सुधि श्री गुर आए।
सुनि श्री अमरदास हरखाए।
लेनि हेत अुठि चले अगारी।
-दरशन मिलहिण- छुटो द्रिग बारी३ ॥४॥
केतिक दूर आगमन आए।
दरशन देखे तन पुलकाए४।
बोलो जाइ न गदगद बानी।
हाथ जोरि करि तूशनि ठानी ॥५॥
दास दशा को देखि क्रिपाला।
कर सोण कर गहि करि तिस काला।
भरो अंक निज गरे लगायो।
बहु प्रकार को सुजस अलायो ॥६॥
धंन जनम तेरो जग भयो।
प्रेम बिसाल मोहि बसि कयो।+पा:-स्री गुरू।
१दिन रात गुरू अमर जी अराधनां करदे सन कि अगम अगाध (गुरू अंगद) जी ळ एथे आए
वेखां।
२किसे तर्हां ना रिहा गिआ (खडूर) गुरू (अंगद) जी तोण।
३दरशन मिलं लगा है, (इह सोच के) नैंां तोण जल छुज़ट पिआ।
४रोम खड़े हो गए।