Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) २१९
करहिण शनान सु जल अभिरामू ॥१३॥
सलिता सफल होइ पग परसे।
मैण भी रावरि के पग दरसे।
सुनि सतिगुर बोले मुशकाई१।
करि स्री अमर! बरुन सफलाई२ ॥१४॥
संगति महिण प्रसादि बरतै हैण।
सभि ते आगे जल महिण दै हैण।
नाम बरन को करहिण अुचारि।
इम सिज़खन महिण रीती डारि* ॥१५॥
हाथ जोरि श्री अमर अुचारी।
तिम हुइ जथा रजाइ तुमारी।
बहुर बिदा हुइ बरुंपधारा।
श्री अंगद तबि बाक अुचारा ॥१६॥
+इह सफरी करि तार मंगावो।
१मुसक्राके।
२हे स्री अमर दास! वरुं ळ सफलता दिओ।
*मुलतान, सिंध आदि इलाकिआण विच दरिआ दी पूजा करने दा इक खास मत है, अुडेरो लाल
नामे कोई इन्हां दा गुरू है। इस पासे वल जदोण सिज़खी प्रचार होइआ, तां पुरातं रसम दरिआ
विच बाणटा पाअुण दी नवेण बणे सिज़खां विच ालबन जारी रही ते फिर एथोण होरथे भी फैली, तदोण
इस दा कारन सिज़खां विच इह प्रविरत होइआ कि वरण गुरू दा सेवक है अुस सेवक ळ छांदा
मिलदा है।
इस समेण सिज़खां ने इस रसम ळ गुरमत सिज़धांत दे प्रतिकूल ते टपला देण वाली समझके
तिआग दिज़ता है।
+अंक १६ दे अंत तोण लै के २० दी पहिली तुक-अपर अहार कुछक तहिण खाइ-तुक दा पाठ
लिखत दे पंज नुसखिआण विच, जो साडी नग़रोण लघे हन, इह पाठ इवेण है जिवेण असां अुज़पर मूल
विच दिज़ता है। छापे दे अुस नुसखे विच जो लाहौर दे किसे ब्राहमण मुद्रित करता ने छपवाइआ ते
आम प्रविरत है, इस दी थावेण पाठ इअुण है:-
भयो समा प्रसादि को जानो। दास एक को बोल बखानो। अब ही जाहु रसोइये पास। आनहु
भोजन तीर बिपास'॥१७॥ हुतोदूर इक सिज़ख बुलायो। तिस को कहि करि नगर पठायो। अब ही
जाहु लांगरी पास। हुकम दीओ श्री मुख सुखरास॥१८॥ जाइ सिज़ख परशाद लिआयो। नदी पाइ
सभि को वरतायो। भोजन पाइ अुठे जब सामी। पूरन ब्रहम सदा निहकामी॥१९॥ निज दासन के
सदा सहाइ।
सपशट है कि पाठ बदलिआ गिआ है।
इक लिखती नुसखे विच अंक १२ दे मुज़ढ विच रुचिर जाति की सफरी एका दी तुक विच
सफरी एका ते हड़ताल ला के पुशप अनेका पाठ बदलिआ है, पर इसे बदले होए पाठ दे
नाल ही किसे दा लिखिआ होइआ सी जिन पाठ हटाइआ है गुरू का देणदार है। सो साबत हो
गिआ कि छापे दे नुसखे दा पाठ जो असां अुपर दिखाइआ है आखेपक है, किसे मज़छी मास तोण