Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ३६

विच सूरमज़तं भाव बीर रस प्रापत करेगा। मतलब इह है कि गुरू जोती
दे सुते प्रभाव पैं करके तां तज़त गान पाएगा ते रण छेत्र विच सनध बज़ध
बीर रस दे प्रभाव पैं तोण सूरमज़तं पाएगा। इसी तर्हां रण विच बरछा
लैके आअुणाशज़त्रआण दा प्राजै करना, गज़ल की सारे छंद विच ओहो रूपक
निभिआ होइआ है।
९. इश गुरू-श्री गुरू हरिराइ जी-मंगल।
सैया: तारा बिलोचन सोचन मोचन
देखि बिशेख बिसै बिस तारा।
तारा भवोदधि ते जन को
गन कीरति सेतु करी बिसतारा।
तारा मलेछन के मत को
अुदिते दिननाथ जथा निस तारा।
तारा रिदै अुपदेश दै खोलति
श्री हरिराइ करे निसतारा ॥१४॥
तारा = अज़ख दी पुतली। ।संस: तार:॥
बिलोचन = अज़ख ।संस: विलोचन॥। सोचन = सोचां। फिकर।
मोचन = दूर करन वाला। ।संस: मोचन = दूर करना। ॥
बिशे = विशेश करके, गहु नाल, मुराद है पिआर ते शरधा दे भाव नाल।
बिशै = विशया, काम क्रोध लोभ आदिक विय।
बिस = ग़हिर ।संस: वि॥।
तारा = मुकत कीता, छुडाइआ। ।संस: तारण = मुकत करना॥
तारा = तारिआ, पार कीता ।संस: तारण = पार करना॥।
भवोदधि = भव सागर ।संस: भव+अुदधि = संसार सागर॥ मुराद है संसार
दे मोह, माया, दुख, कलेश तोण।
सेतु = पुल ।संस: सेतु:॥।बिसतारा = तांिआ। फैलाइआ, दो किनारिआण दे विच बंन्ह दिज़ता।
।संस: विसार = फैलाव॥
तारा = ताड़िआ, झिड़क दिज़ता, मात कीता। ।संस: ताड़नण॥।
अुदिते = अुदय, चड़्हना सूरज दा।
दिननाथ = दिन दा मालक = सूरज।
निसतारा = रात दे तारिआण (ळ) ।संस: निशा = रात। तारा = सितारा॥।
तारा = ताला, जंदरा ।संस: तालक। हिंदी ताला॥।
निसतार = पार अुतारा, मुकती, ।संस: निसार:)

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