Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ४) २२२
२९. ।दूजे दिन दा जंग॥
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दोहरा: संघर को अुतसाह अुर, जोधा बने सुचेत।
सौच शनाने सकल तन, तारी बन रन हेतु॥१॥
भुजंग प्रयात छंद: गुरू सिंघ भेजे अुदे सिंघ आदा।
बजे दुंदभी धौणस ते दीह नादा।
करी कोट के अज़ग्र मैण ओट गाढी।
पदांती सबै सिंघ है चौणप बाढी ॥२॥
अुतै ग़ीन पाए पहारीन सैना।
भए तार सारे चले जुज़ध ऐना।
कटोची बडो ओतसाहं धरंता।
कराचोल पायो गरे ओजवंता ॥३॥
कसी ढाल कंधे बडी मोल केरी।
भरे तीर भाथा पिखे तांहि बेरी१।
लियो चांप भारी बडो डील जाणही।
बली दीह वारो चलो जंग मांही ॥४॥
मिलो भीम चंदं दई धीर बोला।
पिखो जुज़ध मेरो करौ नांहि हौला२।
रहो पीह पै डीठ है सैन प्रेरो३।
पलावै नहीण जोण तथा घेर फेरो ॥५॥
इमं भाखि कै चांप आपं४ टकारा।
सरं संधिकै चौणप संगै प्रहारा।
लए टोल जोधान के बोलि ऐसे।
करौण आज काजं जसं पाइ जैसे ॥६॥
पराजै भई, मैल लागी महानीण।
पखारौण भले बीर कै ओज पानी५।
हटौण न पिछारी, चलौण सामुहाई।
रहैजौन आगे महां दज़्रब पाई ॥७॥
१तदोण वेखके तीराण नाल भज़था भरिआ।
२तुसीण हौल ना करो।
३(मेरी) पिज़ठ ते रहो सैना ळ निगाह विच रज़खके प्रेरदे रहो।
४आपणा।
५सूरमिआण दे बल रूपी पांी नाल धोवाणगा। (अ) बल रूपी पांी बहादरी नाल लाके धोवाणगा।