Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २२४
२५. ।भाई गुरदास जी वापस आए॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>२६
निसानी छंद: बाक सुने गुरदास के, प्रिथीआ तपतायो।है करि तूं अुपदेशटा१, समुझावनि आयो।
इन बातनि को का लखहि, बुधि कहां बिचारी।
त्रास पाइ त्रिसकार को, गहिबे२ डर भारी ॥१॥
हेतु मनावनि दीन भे, पिखि तुरक बली है।
है न पुकारू शाहि ढिग, पति रहति भली है३।
करामात तिस की कहैण, जो डरति बिसाला।
मैण न लखोण तूं बहु लखैण, संग जो लघुकाला४ ॥२॥
मैण नहि मानौण, नहि चलौण, नहि मिलौण कदापी।
प्रगट करो सभि जगत महि, मो कहु बड पापी।
काशट शुशक समान मैण, नित इही सुभाअू।
टूट जाइ नहि नम्र है, इह ठीक सुनाअूण ॥३॥
को बहु बात बनावतो, नहि करिहौण मेला।
सो भ्राता दोनोण मिले, मैण अहौण इकेला।
अग़मत मेरी देखीए, शुभ ताल खनावा।
लाखहु धन खरचनि करो, थल नवोण बनावा ॥४॥
नितप्रति महिमा अधिक है, मेला लगि भारे।
सुलही आदिक नम्र भे, का अपर बिचारे।जहागीर सोण जबि मिलौण, बल अग़मत धारौण।
नम्र करौण निज अज़ग्र मैण, पावन पर डारौण ॥५॥
जु कछु कहौण करवाइ हौण, सभि काज बनावैण५।
सुलही सम अुमराव सभि, निज सीस झुकावैण।
अपन प्रताप दिखाइ कै, पग पर जबि पावौण।
अग़मत इस को नाम है, सभि करि दिखरावोण ॥६॥
अरजन की सम नांहि मेण, पित केर सथान१।
१अुपदेश देण वाला।
२फड़े जाण दा (गुरू अरजन जी ळ)।
३तां पत भली रहिदी है (इह गुरू अरजन जी कहिदे हन)।
४जो थोड़े समेण दा नाल (रहिदा है गुरू अरजन जी दे)। (अ) (मैण)। जो छुटपन तोण नाल (रहिदा
आया हां)।
५बणवावाणगे।