Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 212 of 375 from Volume 14

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २२४

३०. ।संगोशाह ते हरीचंद बज़ध॥
२९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३१
दोहरा: फतेशाहि भाजो पिखो, हरीचंद चंदेल१।
चज़क्रित चित चौणपो चपो२, गहे हाथ महि सेल ॥१॥
रसावल छंद: दयाराम बीरं। नदं चंद धीरं।
कुपो गंगरामं। गुलाबं सु नामं ॥२॥
मरो जीतमज़ल। पिखो भूमथज़ल३।
सभै कोप धाए। पहारी पलाए ॥३॥
सधीरं चंदेल। धरे हाथ सेल।
अरो अज़ग्र आई। कुल लाज पाई ॥४॥
हतो एक दै कै४। रहो ठांढ है कै।
निकारी क्रिपाना। चहैण शज़त्र हाना ॥५॥
दयाराम आदं। ढुके बोलि बादं५।
करैण खज़ग घाता। कटो शज़त्र गाता६ ॥६॥
चितं साम कामं७। गिरो जंग थामं।
रखो धरम बीरं। तजी है न धीरं ॥७॥
भयो टूकटूकं८। परी कूक कूकं।
गयो भाज राजा। तजो जंग काजा ॥८॥
रिसे खानग़ादे। बजे दीह बाजे।
फिरे फेर सारे। करैण मार मारे ॥९॥
निजाबं पठाना। सगोशाह जाना।
अरे आप मांही। हटेण पैर नांही ॥१०॥
सभा बीच जोअू। हुतो मेल दोअू९।
१०पुरं थी चिनारी। गुरू तीरवारी ॥११॥


१हरीचंद ते चंदेलीए ने।
२चज़क्रित होके चिज़त विच अुतसाह आइआ ते कोपवान होके।
३प्रिथवी तल ते।
४इक या दो ळ।
५बोल कहि के।
६सरीर।
७सामी दा कंम चितवदा।
८टुकड़े टुकड़े।
९भाव संगोशाह ते निजाबत दा गुरू जी दी सभा विच मेल सी।
१०पहिलोण गुरू जी दे पास सी जदोण तदोण दी बी पछां सी।

Displaying Page 212 of 375 from Volume 14