Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति १) २२६

२९. ।भीमचंद ळ प्रसादी हाथी ते तंबू दिखाया॥
२८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति १ अगला अंसू>>३०
दोहरा: खान पान सभि बिधिनि के,
भीमचंद को दीनि।
रसत देग ते अधिक ही,
पहुचहि आइसु कीनि ॥१॥
चौपई: त्रिं दाना घ्रित सिता निहारी।
देहु दिवस प्रति हयनि संभारी।
सूखम चावर गोधूम चून।
जाचहि जितिक न देते अून ॥२॥
गुरु घर कमी न किस की अहै।
प्रापति होति जथा जो चहै।
पुरि अनद अति खुशी बिहारैण।
नित प्रति कौतक नवोण निहारैण ॥३॥
सो दिन रजनी बीती जबै।
भई प्रभाति अुठे नर सबै।
हुकम फराशनि साथबखाना।
डेरा१ लगहि थान मैदाना ॥४॥
दुरद प्रसादी करहु शिंगारनि।
कंचन चांदी श्रिंखल डारनि।
ममल ग़रीदार बड झूल।
गजगाहन बाणधहु रहि झूल ॥५॥
सुनि अुमाह सभि के हुइ आयो।
-भीमचंद को गुर अपनायो।
चित चौणपति सभि कार करंते।
डेरा सभि लगाइ दुतिवंते ॥६॥
खान पान सभिहिनि करि लीनि।
जानि समोण गुर अुठिबो कीनि।
सुंदर सदन दार ते निकसे।
जिम अरबिंद बिलोचन बिकसे ॥७॥
खड़ग निखंग अंग के संग।


१तंबू।

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