Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) २३२

३३. ।गुरू जी दा तीरथां ळ पविज़त्र करन टुरना॥
३२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>३४
दोहरा: तेग बहादर सतिगुरू, सभि गाता सु प्रबीन।
लखी भविज़खत बारता, जिम है है सो चीनि१ ॥१॥
चौपई: पुन सिज़खनि को करनि अुधार।
कितिक प्रतीखति सदन मझार।
पूरब देश जु दूर विशेशु।
संगति को अभिलाख अशेशु ॥२॥
गमन तीरथनि कीनि बहाना।
निज दासनि चाहति कज़लाना।
पुरि अनद जेतिक बस गए।
तिते बसाइ देति सुख भए ॥३॥
लखो शरीका सोढिनि केरा।-पिखि संकट को पाइ बडेरा२।
अनिक अुपावनि को नित ठानैण।
दरब लोभ जिन रिदै महानै ॥४॥
हम चित शांति धरे बहु रहे।
तअू देखि तिन, अुर दुख दहे।
इन ते अधिक दूर अबि जाइ।
बिन देखे हम को, सुख पाइ* ॥५॥
तां ते गमन करनि अबि आछे।
पुरहि कामना जे सिख बाणछे-।
बहु कारन को जानि गुसाईण।
कहि निज लोकनि सकल जनाई ॥६॥


१सो जाण लई।
२(सोढी) देख के बड़ा दुज़ख पाअुणदे हन।
*गुरू जी दी तिआग ब्रिती कमाल दी है, पहिलोण गुरिआई तोण छपे रहे फेर लैंोण नांह कीती, फेर
बकाला छज़ड दिज़ता कि ईरखी लोक सुखी जो जाण। अंम्रितसर आए एथे बी ईरखा देखी तां तिआग
मुख रज़खके मुड़ गए, फेर बकाला छज़ड के कीरतपुर जा बसे अुथे बी शरीका भाव तज़कके अनदपुर
जा बसाइआ। अजे बी सोढी शरीके ळ ठढ ना पई तां आप पंजाब छोड़के प्रदेशां ळ टुर पए कि
असीण पास ना होवीए तां इह सुखी होण ते मंन मंनीआण मौजाण कर लैं। इन्हां ळ पकड़ां हन ते
असीण निशपकड़ हां। धीरमज़ल ने जो दिली मनसूबा बज़धा सो बी इह सी कि जिवेणदेश तोण बाहर हो
जान, सो तिआग दे सरदार आप ही अुठ के टुर पए कि तुसां लई असीण आप ही देश मोकला
कर देणदे हां, पापां दे भागी हो के तुसीण किअुण भार चाअुणदे हो।

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