Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ११) ३५
४. ।मज़खं शाह बकाले॥
३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ११ अगला अंसू>>५
दोहरा: मारग आइ अुलघि कै, मज़खं शाह बिसाल।
देश बिखै सुनिबो करो, जिस प्रकारु गुरु चाल१ ॥१॥
चौपई: श्री हरिक्रिशन बाक जिम कहो।
किनहूं गुरू रूप नहि लहो।
बीच बकाले गुरू कहावैण।
दै बिंसत गादीनि पुजावैण ॥२॥
नभ महि सूर न प्रगटहि जावद।
अुडगन अधिक प्रकाशहि तावद।
यां ते लखीयति है इस भाइ।
अबि लौ गुरु न भा बिदताइ ॥३॥
मज़खं शाह सुनति संदेह।
मानस संसै मान अछेह२।
-बहु धन लाभ बनज ते आवा।
तिह दसंध कोमैण निकसावा ॥४॥
अुदधि जहाज अटक जबि गइअू।
तहां सहाइक सतिगुर भइअू।
तबि मन ते मैण दरब घनेरा।
अरपनि चहो गुरनि के पैरा ॥५॥
बहुत बिज़त अबि लावनि कीना।
सतिगुरु भेट चहौण मैण दीना।
किस प्रकार करि सकवि पछान।
भे हरि क्रिशन सु अंतर धान ॥६॥
केहरि वसतु करी कहु देनि३।
किम पुन चहि तिन ते फल लैनि।
होवहि निशचै, गुरू न जावत।
असमंजस धन अरपनि तावत ॥७॥
कौन सथल महि खोजौण गुर को।
१गुरू जी ने चलांा कीता है।
२मन विच पज़का संसा मंनिआण।
३शेर दी चीग़ हाथी ळ देणी।