Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) २३४

२७. ।गुरदास जी गोइंदवालोण हो के सुधासर आए। छोलिआण दी रोटी मिली॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> २८
दोहरा: इक दिन गोइंदवाल ते, भज़ले कुल गुरदास।
चलो हेत दरशन गुरू, अुर महिण धरे हुलास ॥१॥
चौपई: -श्री गुर रामदास के नदु।
अहै तीन, बड प्रिथीआ चंदु।
महांदेव मज़धम१ सुत वहै।
दुहन अनुज२ श्री अरजन अहैण ॥२॥
किस बिधि बरतैण आपस मांही।
प्रिथम दैश सम, कै अबि नांही३।
जबि के बैठे गुरता गादी।
नहिण मैणकीनहुण कुछ संबादी४ ॥३॥
कैसे अबि निबहै बिवहार।
भई नवीन जिनहुण की कार।
प्रिथम इकज़त्र हुतो परवारू।
अबि भे प्रिथक भ्रात रिस धारू- ॥४॥
इज़तादिक गिनती करि चलियो।
रामदास पुरि आइ सु मिलियो।
पूरब श्री अरजन ढिगु आयो।
जानि गुरू पद सीस निवायो ॥५॥
बैठो निकट कुशल शुभ पूछा।
कहो दुहन द्रिश ते हित सूछा५।
श्री गुर अमरदास परवारू।
कुशल सहत सभि कीन अुचारू ॥६॥
मोहन दुतिय मोहरी चंद।
संसराम तिन पुज़त्र अनद।
पतनी सहत रहति हरखाए।
कुशल तुमारी चहिण समुदाए ॥७॥


१विचकारला।
२दुहां तोण छोटे।
३प्रिथम सम दैश है कि हुण नहीण।
४गज़ल बात।
५पविज़त्र।

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