Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २३७
२३. ।नुह ग्राम ळ दंड॥२२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>२४
दोहरा: खड़ग धरहि निज गर बिखै, जाला बमणी हाथ।
हतहि निशाने पर मिलहि, कै अखेर के साथ१ ॥१॥
चौपई: सुपने मात्र न आयुध जानहि२।
सुनति लराई जे डर मानहि।
सो अंम्रित छकि होवति जोधे।
पिखि अनीत शज़त्रनि पर क्रोधे ॥२॥
शसत्रन को बिसाहु नहि करैण।
राति दिवस अंगनि संग धरैण।
इक दिन बैठे गुर फुरमायहु।
प्रथम छज़त्रीअन राज गवायहु ॥३॥
शसत्रनि को तजि कै अज़भासा।
बसे अवासनि बिलस बिलासा।
राग* रंग महि मज़ति बिसाला।
डरन लगे रिपु जानि कराला ॥४॥
समुख मलेछन के नहि होए।
तजि आयुध सूरज़तं खोए।
भए दीन कातुर मति मूड़्हे।
निकसि सदन ते असु न अरूड़ै३ ॥५॥
तबि तुरकान कीनि रन करनी।
छीनोण राज कोश गढ धरनी।
शसत्रनि के अधीन है राज।
जो न धरहि तिस बिगरहि काज ॥६॥
यां ते सरब खालसा सुनीअहि।
आयुध धरिबे अुज़तम गुनीअहि।
जबि हमरे दरशन को आवहु।बनि सुचेत तन शसत्र सजावहु ॥७॥
१मिलके निशाने पर मारदे हन अथवा शिकार गए ते। भाव बंदूक नाल या चांद मारी करदे हन
या शिकार खेडदे हन।
२सुपने मात्र (जेहड़े सिख) शसत्र (चलौंा) नहीण सन जाणदे।
*पा:-राज
३घोड़िआण ते ना चड़े (सूरमे बणके)।