Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) २४२

२९. ।कसेरे ने होर भेत लैंे॥
२८ॴॴपिछला अंसूततकरा रासि ७ अगला अंसू>>३०
दोहरा: इक दिन बैठो सभिनि महि,
भनति अजान समान।
घोरे सच पातिशाहि के,
बली चलाक महान ॥१॥
चौपई: हग़रत हेरन हेतु रखाए।
जिन दरशन ते अुर हरखाए।
इस बिधि रहहि इसी थल खरे।
किधोण ग़ीन भी डारन करेण? ॥२॥
सुनि इक बोलो भो मति भोरे।
इन के ग़ीन नहीण मुल थोरे।
जबर जवाहर ग़ाहर जरे।
चामीकर महि दीपति खरे ॥३॥
मुकता कोरदार बर हीरे।
कारीगरन चुकोरन१ चीरे।
तिन की पंकति शोभति ऐसी।
दिपति गगन मैण तारन जैसी ॥४॥
कबहु न तैण देखो किम कोई।
ग़ीन तुरंगन इन सम जोई।
सवा लाख कीमत तिन केरी।
तुम समान कबि होइ न हेरी२* ॥५॥
कौन गवारन को दिखरावै।
शाहु समीप होनि नहि पावैण।
बिना शाहु के कौन बनावै३?
एतो धन को४ खरच लगावै? ॥६॥
सुनि करि बिधि चंद घिघिआनो।
मैण तुम बिखै मिलो अबि मानो।१चौनकरे।
२तेरे वरगिआण कदे देखी बी नहीण होणी।
*पा:-नेरी।
३कौन बणवाअुणदा है?
४कौं।

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