Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २४४
२४. ।भाई नद लाल॥
२३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>२५
दोहरा: नद लाल की बारता,
कहौण सुनहु मति लाइ।
जिम सतिगुर सोण मिलि,
रहो आनद लहि अधिकाइ ॥१॥
चौपई: खज़त्री हुतो महां धनवंता।
तिस के ग्रिह जनमोणमतिवंता*।
धरम बैशनो धारन करे।
इस को पिता भाअु१ मन धरे ॥२॥
जबि दादश संमत को होवा।
इक दिन बिचरति पित ने जोवा।
-अबहि अुचित कंठी बधवावनि-।
अुर बिचार किय गुरू बुलावनि ॥३॥
हित अुपदेश बिठायहु पास।
कहि सुत सोण हम हैण हरि दास।
गुरू बैशनो धारन करो।
तिस आगा के नित अनुसरो ॥४॥
कंठी अपने कंठ बंधवाहु।
धरम बैशनो के महि आवहु।
इम कहि लियो बुलाइ बैरागी।
*भाई नद लाल जी दे पिता दा नाम छज़जू राम जी सी जो खत्री जाती दे सन। नद लाल जी दा
जनम ग़नी विच होइआ जिज़थे अुहनां दे पिता जी मीर मुनशी सन। अठाराण अुनीण वर्हे दी अुमर
विच आप मुलतान आ रहे, इथे ही आप दा इक सिज़ख घराणे विच विवाह होइआ। फिर
शाहग़ादा मुअज़ग़म पास नौकर होए। औरंगग़ेब दी सलाह आप ळ मुसलमान करन दी हो आई तां
आप शाहग़ादे दी नौकरी छज़डके अनदपुर आ रहे। अनदपुर दे वडे जंग मगरोण आप मुलतान
रहिके सिज़खी दा प्रचार करदे रहे ते अुथे ही चलांा होइआ। गुरू सिज़खी विच आप दा रुतबा
भाईगुरदास दे तुज़ल है, बाणी आप दी सिज़खी विच प्रमांीक मंनी जाणदी है। आप ने फारसी नग़म
नसर विच अनेक ग्रंथ रचे हन। इन्हां विचोण कईआण दा तरजमा खा: ट्रै: सुसैटी ने छापिआ है।
प्रसिध नाम इह हन:-
१. दीवान गोया। २. ग़िंदगी नामा। ३. जोत विकास हिंदी।
४. जोत विकास फारसी। ५. तौसीफोसना। ६. गंज नामा।
७. अरग़ुल इलाग़। ८. खातमाह। ९. इनशा दसतूर।
आप दी संतान विच इस वेले बी श्री गुरू घर दा प्रेम बहुत है।
१(वैशनो धरम विच) प्रेम।