Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २५१

२५. ।भाई नद लालजी माइने दज़से॥
२४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>२६
दोहरा: अनिक मुलाने ढिग रहहि, औरंग ते धन पाइ।
करति कुरानहि मायने, जस जिस की मति आइ१ ॥१॥
चौपई: खास कचहिरी लागहि जहां।
हुतो दरोा प्रेमी तहां।
नदलाल संग राखति प्रीति।
मिलि मसले को करता नीति ॥२॥
शोक खुदाइ मिलनि को धरै।
तिसु दिशि की बातैण बहु करै।
बूझति नद लाल के संगा।
इह भाखहि जसु गुरू अुतंगा२ ॥३॥
एक मायना अरो न* होइ३।
नअुरंग बूझति सभि को सोइ।
जितिक मुलाने सुमति कहावैण।
सभिहिनि को सो सुनै+ बुलावै ॥४॥
नहीण तसज़ला किस ते होई।
मति अनुसार कहै सभि कोई।
फिकरवंद नौरंग बहु रहै।
करे मायना सभि सोण कहै ॥५॥
अनिक इलम के आलम++ जावैण।
करहि बिचारनि भाखि सुनावैण।
तअू न किस ते आयो सोइ।
करि बुधि हारि रहे सभि कोइ ॥६॥
गयो पदर ढिग४ इक दिन मांहू।
बैठो जाइ बहादर शाहू।१जैसा जिस दी बुज़धी विच आणवदा है।
२गुरू जी दा श्रेशट (जस)।
*पा:-सु।
३(औरंगग़ेब दी कचहिरी विच किसे इक मुशकल (शै दा) अरथ अड़िआ होइआ सी, (हज़ल) नहीण
सी हुंदा।
+पा:-ले कोल।
++पा:-आमल।
४बाप पास।

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