Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ७) २५६
३१. ।इक घोड़ा॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>३२
दोहरा: पट कट सोण कस करि तबहि, पगीआ भले सुधारि।
आरे महि तारी१ धरी, गमनो दाव बिचारि ॥१॥
चौपई:डारो जहां प्रथम ही हाथ।
गुर रग़ाइ लागी कर साथ।
ले करि कुलफ२ तुरत ही छोरा।
जानहि ग़ीन धरैण जिस ओरा ॥२॥
करति शीघ्र ही लीनि अुठाइ।
हय दिलबाग निकटि तबि जाइ।
रेशम डोरहि छोरन करी।
देति दिलासो धीरज धरी ॥३॥
ततछिन कविका मुख पहिराई।
गहि ग्रीवा पर बाग टिकाई।
ताहरू३ डारि, ग़ीन कर लीनि४।
पीठ तुरंगम की धरि दीनि ॥४॥
हुतो पटंबर को म्रिदु तंग५।
खैणच डारि६ ैचो बल संग।
चांमीकर रकाब नग जरी।
दोनहु दिशि लरकावन करी ॥५॥
दुमची दुमची महि पहिराई७।
चरन पिछारी८ तुरत छुराई।
धरि गुर धान सिमरि सतिनामू।
करहु सपूरन अपनो कामू ॥६॥
होति बिअदबी मो ते जोइ।
१आले विच कुंजी।
२जंदरा ।अ: कुल॥
३ग़ीन हेठां जो कपड़ा पाईदा है।
४काठी हज़थ विच लई।
५पेटी, जिस नाल ग़ीन कज़सी दी है घोड़े ते।
६खिज़च पा के।
७पूछविच दुमची पहिराई। दुमची इक चमड़े दे साज दा इक हिज़सा है जिस दा इक पासा घोड़े
दी पूछ विच पहिराइआ जाणदा है।
८पिछाड़ी, जिस नाल घोड़े दे पिछले पैर बज़धे हुंदे हन।