Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 245 of 375 from Volume 14

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) २५७

३४. ।राइपुर दी राणी॥
३३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>३५
दोहरा: जहि सतिगुर डेरा कियो,
त्रौदश दिवस टिकाइ।
अबि तिस थल महि सिंघ नर१,
जागा लई बनाइ ॥१॥
निशानी छंद: अबि गुर जागा नाम को, भाखति हैण टोका२।
सिंघनि ते हम श्रौन सुन, नहि आणख बिलोका।
भई प्राति सतिगुर चढे, बजि अुठो नगारा।
सैना तार अरूढि हय, धरि शसत्र दुधारा ॥२॥थरहरि कंपहि ग्राम पुरि, सुनि मार बकारा।
परहि धूम दल चलनि की, मिलवति सिरदारा।
भेट देति बहु भांति की, मुख बिनै बखानैण।
अभै दान तिह देति प्रभु, नहि चिंता ठानैण ॥३॥
दधी दुघध बहु दे मिलैण, श्री प्रभु मुख देखैण।
-रघुबर तनु श्री क्रिशन इह-, मतवंत परेखैण।
लखहि सफलता हेरि कै, लै लाभ सु नैना।
जनु सकेलि कै सौणदरज, रचि बिध सुख दैना३ ॥४॥
इक राणी को राइ पुरि, ग्रामहि को नामू।
करति राज राणी तहां, सुत जिस अभिरामू।
आनदपुरि के पंथ मैण, चलतो नियरावा।
सुनि सतिगुर आगवन कौ, तिन मोद बढावा ॥५॥
४-पुरवति हैण मन कामना, पिखि शरधा धारी।
करहि भाव सभि रिदै को, देण सभि सुख भारी-।
इज़तादिक जसु श्रौन सुनि, -दल संग घनेरा।
हरहि, देहि५ छित राज को; समरज़थ बडेरा- ॥६॥
निकसी बाहिर मग जहां, हुइ खरी अगारी।
कलीधर आवति पिखे, हय की असवारी।


१सिंघां ने।
२टोका साहिब नामे गुरदवारा नाहनराज विच अजे वी है।
३जाणो इकज़ठी करके सुंदरताई बिधाता ने सुखदाता (गुरू जी दा सरीर) रचिआ है।
४इह खातर सुणी कि......।
५हर सकदे ते दे सकदे हन।

Displaying Page 245 of 375 from Volume 14