Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) ३७
४. ।केशव दास मिलना॥
३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>५
दोहरा: चितवत बिदतनि चंडका,
श्री सतिगुर महाराज।
सुपति जथा सुख निस बिखै,
बडे रीब निवाज ॥१॥
पाधड़ी छंद: अुठियंति तेज+ ते तेज रूप१।
खुलियंति पलक लोचन अनूप।
पढियंति शबद चहूं ओर जोर२।
धुनि राग सु मधुर म्रिदंग घोर ॥२॥
झरणंति तार बाजंति बैन३।
गावंति गान दा गुरनि बैन४।
धरियंति रिदै जिन को बिचार।
नशटंति काम आदिक बिकार ॥३॥
झड़ियंति डंक नौबत बजंति५।
त्रसियंति शज़त्र श्रौने सुनति६।बोलति नकीब सतिगुर प्रताप।
जहि कहां होति करतार जाप ॥४॥
डंके रणंक, खड़कैण, घड़ियाल७।
दर पढहि भाट कीरति बिसाल।
बजियंति संख तुररी अनेक।
सुनि अुठति सिज़ख धारति बिबेक८ ॥५॥
मंगल महान मंदर सु पौर।
तागंति नीणद हिंदवान मौर९।
+पा:-शुध पाठ:-सेज-जापदा है।
१तेज दा ही तेज रूप गुरू जी जागे।
२ग़ोर नाल।
३साग़ां दीआण ताराण दी झरनाट पैणदी है (ते साग़ां विचोण) बोल वजदे हन।
४गुरबाणी।
५डंके पैके धौणसे वज रहे हन।
६वैरी कंनी सुणके डरदे हन।
७डंके वजदे हन घड़ाल खड़कदे हन।
८हुशिआर हो जाणदे हन।
९भाव गुरू जी।