Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ३) २६६२७. ।भाई नदलाल जी। होली॥
२६ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति ३ अगला अंसू>>२८
दोहरा: गई सीत रुत जगत ते, आयो फागन मास।
होति हरख नारी नरनि, करते हास बिलास ॥१॥
सैया: देखि अजाइब को रुत फागन
साहिब आइसु आप अुचारी।
कोशप को बुलवाइ हदूर कहो
सभि कीजीऐ फाग१ की तारी।
और कहो सभि सिज़खन संग
जथा शकती करि सौजनि सारी२।
लाल गुलाल बिसाल अंबीरनि,
रंग निकार अनेक प्रकारी ॥२॥
रंग पतंग सुरंग कियो बहु,
किंसक फूलनि पीत निकारा३।
डारि महां खुशबोइ मझार,
परै जबि चीर, अुठै महिकारा।
सिज़खनि कीनि महां धन दे करि
आपने आपने थान सुधारा।
आप गुरू अबि के४ अनुरागति
खेलहिगे सुभ ाग अुदारा ॥३॥
ब्रिंद भए सिख संगति आइ
अनद बिलद गुरू दरबारा।
लगर होति अतोट जहां कहि
जो जिह चाहति खाइ अहारा।
भूर मिले चहु कोद ते मोदति
आवति हैणमिलि टोल हग़ारा।
भीर भई भरपूर भयो पुरि
भाअु भरे भल भाग लिलारा ॥४॥
ताल, रबाब, पखावज के बहु

१होली।
२सारी समज़ग्री (इकज़ठी) करो।
३वकम विज़चोण सुहणा (लाल) रंग तिआर कीता ते केसू फुलां ळ (भिअुणके) विचोण पीला रंग कज़ढिआ।
४ऐतकाण।

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