Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 255 of 299 from Volume 20

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (ऐन २) २६७

आने संग पूज तिन होअू ॥३६॥
राजा राम सु शाहु वग़ीर।सुनि करि आए सुंदरी तीर।
दयो दरब बंदन बहु कीनि।
मात खुशी करि आशिख दीन ॥३७॥
पूरब के प्रसंग पुन कहे।
कहां अजीत सिंघ म्रितु लहे?
होनहार सो मिटति न कबै।
बुधि बल ते प्रयास करि सबै ॥३८॥
पुन माता ने भनोण ब्रितंत।
मुझ को संकट रहे अनत।
लरि करि जबि अजीत सिंघ मारा।
पीछे लुटो मोहि घर सारा ॥३९॥
वसतु शाहु के गई खग़ाने।
बरजो किसू न मम घर जाने१।
राजा राम सुनति कहि धीर।
मैण अबि कहौण शाहु के तीर ॥४०॥
इम सुनाइ बिच दुरग पयाना।
शाहु समीप ब्रितंत बखाना।
प्रथम बहादर शाहु बडेरे।
तिस पर सतिगुर खुशी घनेरे ॥४१॥
सलतन दीनि फेर तुम घर सोण।
ताराआग़म हति इक सर सोण।
तिस गुर की गेहन बिच पुरी।
समा बितावन के हित थिरी ॥४२॥
तिह घर लूटि खग़ाने डारा।
इह तुम को है बहु बुरिआरा।
गुर पीरन को अदब बडेरा।
सुख प्रापत है लोक घनेरा ॥४३॥
सुनति शाहु अुर त्रासबिचारा।
कहो समाज फेर दिहु सारा।


१मेरा घर जाणके।

Displaying Page 255 of 299 from Volume 20