Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (ऐन १) ३९
सो बोलो निशचै म्रितु पाई।
तीन बार गुर गिरा हटाई।
सुनि प्रभु मुशट खोलि करि भाखा।
तिस को भौर१ हमहु गहि राखा ॥२९॥
नहि बच माना, सो अबि छोरा।
नांहित जीव अुठति जुति जोरा२।
निज मुशटी महि राखो रोक।
हित जिवाइबे करन अशोक ॥३०॥
सज़त बचन तैण कोण नहि मानोण?
मरो जिवावति३, सो तैण हानोण४।
रुदति गयो मिलि कीनसि दाह।
भयो चौधरी ततछिन साह ॥३१॥
पुन श्री प्रभु तारी करिवाई।
डारे ग़ीन हयनि समुदाई।
करो कूच चलि परे अगेरे।
कितिक कोस अुलघे जिस बेरे ॥३२॥
बहिवल५ ते सिअुरासी९ +नामू।
करे बिलोकन जबि ए ग्रामू।
डेरा करति भए सुभ थान।
सने सने पहुचे सभि आनि ॥३३॥
पहिर तीसरा दिन को भयो।
मादिक तबि अनाइ छकि लयो।
दोदेवाल ताल को नामू।
तिस महि सुनि जल को अभिरामू॥३४॥
हेत सुचेते तिस ढिग गए।
सौच शनान तहां करि लए।
एक शहीद तुरक तबि आवा।
१जीव आतमा।
२बल नाल।
३असीण जिवा दिंदे।
४तूं मार दिज़ता है।
५नाम हन पिंडां दे।
+साखीआण वाली पोथी विच पाठ सिअुरामी है, जो ठीक है।