Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ३९
५. ।पैणदे दा घर जवाई। श्री तेग बहादर जी दे विआह दी तिआरी॥
४ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>६
दोहरा: तनुजा पैणदे खान की, बर के अुचित पछान।
छोटे मीर सु ग्राम महि, बासहि एक पठान ॥१॥
हाकल छंद: तिह नाम खान असमाना।
बय खोड़स बरखनि जाना।
सो पदर१ समेत बसंता।
ढिग शाहु चाकरी वंता ॥२॥
सनमान समेत महाना।
धन शाहु देति भट जाना।
निज समता२ भले पछानी।
कुल, धन,बय सुंदर मानी ॥३॥
तबि पैणदे खान करि नाता।
दे सुता सु कीनि जमाता।
ततकाल निकाहु करायो।
घर अपने तिसै बसायो ॥४॥
सुत अुपजो बारिक सोई३।
तनुजापति सुत सम जोई४।
तिस देखि रहै सुख पाई।
करि राखो सदन जवाई५ ॥५॥
ले गुर ते वसतु महाना।
सभि देति तांहि सुख माना।
तिम पैणदे खान की दारा।
बहु करति रहति नित पारा ॥६॥
करि भोजन सादल नाना।
अचिवाइ आपने पाना।
इम बीतो केतिक काला।
मिलि भोगहि अनद बिसाला ॥७॥
१पिता।
२बराबरी।
३(पैणदे दे घर जो) पुज़त्र होइआ अुह अजे बालक सी (इस वासते)।
४जवाई ळ पुज़तर वाणग देखदा सी (पैणदा)।
५घर जवाई बणा रखिआ।