Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) २७३
३१. ।श्री हरिगोविंद जी पड़्हने बैठे॥
३०ॴॴपिछला अंसू ततकरारासि ३ अगला अंसू>>३२
दोहरा: इस प्रकार श्री सतिगुरू, कीनसि दोस बितीत।
नदन हरि गोविंद जी, तन बिलद मुद चीत१ ॥१॥
हाकल छंद: प्रिय पुज़त्र बिलोक बिचारैण।
श्री अरजन इम अुरधारैण।
-चटसाल२ बिसाल बिठावैण।
तहि बैठति बिज़दा पावैण ॥२॥
किस थान पठैण- सु बिचारी।
पुन मन मैण बैसो धारी।
-जो हमरो भ्रात बडेरो।
अुर सरल सुशील घनेरो ॥३॥
शुभ महांदेव जिस नामू-।
चलि गए तिसी के धामू।
करि बंदन सादर बैसे।
बलदेव३ अज़ग्र हरि४ जैसे ॥४॥
म्रिदु बिनै सप्रेम* बखाने।
तुम भ्राता अहो महाने।
सम पिता सदीव हमारे।
गुन अअुगन को न चितारे ॥५॥
हरि गोबिंद दास तुमारा।
गन बिघन बिदार अुबारा।
अबि लायक पठिबे सोअू।
जो बिज़दा लेवहिकोअू ॥६॥
तुम आप देहु फुरमाई।
हित बिज़दा जहां पठाई।
सुनि महांदेव मति दीहा१।
१पुज़तर हरगोविंद जी दा सरीर ते प्रसंन मन (देखके)। बिलोक पद अगली तुक विच है। (अ)
सरीर वधदा (देखके) चित विच प्रसंन हुंदे हन।
२पाठशाला।
३क्रिशन जी दा वडा भाई।
४क्रिशन।
*पा:-समेत।